मौज में हैं नेता और संसद विकासमान है। जबकि सड़क तक यही हल्ला मचा हुआ है कि भाई बड़ी ज़ोर की मँहगाई है और सरकार भी हाथ खड़े किए बैठी है तो ठीक है हाथ खड़े किए रहो बढ़िया बात है पर ये भी तो ध्यान दो कि मँहगाई में समरूपता हो,जब तुम उनके साथ न्याय नहीं कर सकते जो ग़रीब है,अफोर्ड नहीं कर सकते तो लोकतंत्र के उन बड़े धनाढ्य महापुरुषों से इस प्रकार टोकन मनी लेकर सरेआम उनका अपमान किया जा रहा है।जनता है तो वसूलने के लिए इसलिए जनता को 50 की जगह 55 की एक प्लेट दाल बेची जाए परंतु सांसदों को बेवजह तंग न किया जाए। लेकिन ऐसा कुछ भी नही अपने भारत में इस समय तो सब कुछ उल्टा चल रहा है जो बेचारे है उनके लिए मँहगाई और जो वैसे ही राजगद्दी पर बैठे राज कर रहे है उनके लिए सब कुछ सस्ता और उत्तम क़्वालिटी का भी मगर ऐसा क्यों,ये भी कोई बात हुई इतने करोड़ों खर्च कर करके वोट हथियाये गये हैं और उन्हें दाल भी खरीदनी पड़े तो यह देश का अपमान है। गरीबों का अपमान है।
चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Friday, January 29, 2010
प्रतिष्ठित समाचार पत्र हरिभूमि के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित मेरी एक और नई व्यंग- नेताओं का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान.
मौज में हैं नेता और संसद विकासमान है। जबकि सड़क तक यही हल्ला मचा हुआ है कि भाई बड़ी ज़ोर की मँहगाई है और सरकार भी हाथ खड़े किए बैठी है तो ठीक है हाथ खड़े किए रहो बढ़िया बात है पर ये भी तो ध्यान दो कि मँहगाई में समरूपता हो,जब तुम उनके साथ न्याय नहीं कर सकते जो ग़रीब है,अफोर्ड नहीं कर सकते तो लोकतंत्र के उन बड़े धनाढ्य महापुरुषों से इस प्रकार टोकन मनी लेकर सरेआम उनका अपमान किया जा रहा है।जनता है तो वसूलने के लिए इसलिए जनता को 50 की जगह 55 की एक प्लेट दाल बेची जाए परंतु सांसदों को बेवजह तंग न किया जाए। लेकिन ऐसा कुछ भी नही अपने भारत में इस समय तो सब कुछ उल्टा चल रहा है जो बेचारे है उनके लिए मँहगाई और जो वैसे ही राजगद्दी पर बैठे राज कर रहे है उनके लिए सब कुछ सस्ता और उत्तम क़्वालिटी का भी मगर ऐसा क्यों,ये भी कोई बात हुई इतने करोड़ों खर्च कर करके वोट हथियाये गये हैं और उन्हें दाल भी खरीदनी पड़े तो यह देश का अपमान है। गरीबों का अपमान है।
Friday, January 22, 2010
अपने ही समाज के बीच से निकलती हुई दो-दो लाइनों की कुछ फुलझड़ियाँ-3
Sunday, January 17, 2010
जब आप सुधर गये, तो एक दिन वो भी सुधर जाएगा.
Tuesday, January 12, 2010
पावनता गंगाजल की, अपने अस्तित्व को जूझ रही.
Thursday, January 7, 2010
आधी रात का चाँद और मैं---मेरी पचासवीं कविता
नवंबर माह के यूनिकविता प्रतियोगिता में हिन्दयुग्म द्वारा सम्मानित मेरी एक कविता..
रात के आगोश में,
सितारों को छेड़ता,चाँद,
और ज़मीं पर मैं,
अपने मानवीय अस्तित्व का वहन करता हुआ,
दोनों उलझ पड़े,बातों की गहमा-गहमी में,
बादलों की परतों से,
आँखमिचौली खेलता हुआ,
चाँद आशातीत होकर मुझसे कहा,
कितनी खूबसूरत है,यह धरा,
और कितने प्यारे हो,तुम इंसान लोग,
काश,मैं भी इंसानों के बीच होता,
बादलों के साथ बरसों गुज़ारें हमनें,
कुछ पल नदी,झरनो एवम् पर्वतों के साथ भी बिताता,
शीतलता और निर्मलता मेरे अभिन्न अंग हैं,
शांति,प्रेम और भावनाओं का प्रदर्शन,
मानव से सीख लेता,मैं,
अभी तक आसमान,बादल,तारे हमारे हैं,
फिर संपूर्ण ब्रह्मांड का दिल जीत लेता,मैं,
बस इतना कहा चाँद ने, और हँसी निकल पड़ी मुझे,
सोचा,हाय रे इंसानी फ़ितरत, चाँद भी इसके झाँसे में आ गया,
थोड़ी देर सोचता ठहरा रहा,
फिर चाँद से मैने बोला,
चाँद तुम बड़े भोले और नादान हो,
प्रेम,भावनाएँ यहाँ सब दिखावा है,
रात के अंधेरे का छलावा है,
कभी फुरसत मिले तो दिन में आना,
और मानवीय कृत्यों का साक्षात सबूत पाना,
अभी सो रहे हैं, इसलिए शांति के उपासक प्रतीत हो रहे हैं,
इंसान ही इंसान की नींदे उड़ाते है,
फिर खुद चैन की नींद सोते है,
हे चाँद,वास्तव में इंसान तो पत्थर के बने होते हैं,
सूरज से पूछना, इंसानों की चाल-ढाल,रूप-रंग,
चालाकी,एहसानफरामोशी के ढंग,
तुम्हारी शीतलता और निर्मलता सलामत रहे,
शुक्र है खुदा का,तुम दिन में नही आते,
अन्यथा इंसानी फ़ितरत देख कर,
तुम भी सूरज की भाँति आग में जल जाते!!