Saturday, July 31, 2010

हैप्पी फ्रेंडशिप डे टू माइ ऑल फ्रेंड्स------(विनोद कुमार पांडेय)

ईश्वर के अनमोल उपहार दोस्त और उसकी दोस्ती पर दो शब्द.

दोस्त,नेह का विशुद्ध उच्चारण है,
दोस्त,जीवन युद्ध जीतने का कारण है,
दोस्त,आँखों की चमक,उम्मीद की संरचना है,
दोस्त,ख्वाब एवम् ख़यालों की सुंदर अभिव्यंजना है.

दोस्त,स्वार्थ से हीन गुणवान शिक्षक है,
दोस्त,मानव का सर्वश्रेष्ट समीक्षक है,
दोस्त,भावनाओं से उमड़ता प्यार का सागर है,
दोस्त,जिसका बलिदान विश्व मे उजागर है.

दोस्त,मोहक सपनों का सजीव एहसास है,
दोस्त,व्याकुल नयनों की अटूट आस है,
दोस्त,साहस है,शक्ति है,सहारा है,
दोस्त,अंधेरी रात का चमकता सितारा है.

दोस्त,नियंत्रित,प्रवाहित इच्छाओं का झील है,
दोस्त,जीवन रूपी कैमरे का धुला हुआ रील है,
दोस्त,साहिल है,किनारा है,पतवार है,
दोस्त,बिना अधूरा यह संसार है.

दोस्त,विश्वास का दूसरा नाम है,
दोस्त,प्रेम की परीक्षा का परिणाम है,
दोस्त,मुस्कुराहट देकर गम दूर भगाते है,
दोस्त,धरा पर ईश्वरीय परछाई कहलाते है.

दोस्त एवम् दोस्ती दोनो का अभिनंदन करता हूँ,
दोस्ती जैसे अनमोल उपहार के लिए,
आज अपने सारे दोस्तों को नमन करता हूँ,

Tuesday, July 27, 2010

रिश्ते-नाते,प्यार,वफ़ा,सब कुछ फिल्मों जैसे हैं------(विनोद कुमार पांडेय)

दुनिया वाले कैसे है
ऐसे हैं ना वैसे हैं

फ़ितरत में है अव्वल नंबर,
दिखते भोले जैसे हैं

होश नही दुनियादारी का
मय में डूबे ऐसे हैं

पैसा,पैसा,पैसा,पैसा
पॉकेट में बस पैसे हैं

पूछ ना पाए बाप से बेटा
बाबू जी अब कैसे हैं

रिश्ते-नाते,प्यार,वफ़ा
सब कुछ फिल्मों जैसे हैं

संवेदना मर चुकी पूरी
जिंदा जैसे तैसे हैं,

Friday, July 23, 2010

मीडिया भी क्या कमाल की चीज़ है(एक व्यंग)-----विनोद कुमार पांडेय

मीडिया भी क्या मस्त चीज़ है,जिसे चाहे आसमान पर पहुँचा दे और जिसे चाहे उठा कर ज़मीन पर ऐसा पटके की बेचारा हड्डियाँ बटोरता फिरे, अभी आई. पी. एल. के मामले में खूब हल्ला मचा कर कई नामचीन हस्तियों को दे मारा,उसमें कुछ तो बेचारे चुपचाप माहौल समझ कर निकल लिए और कुछ अभी तक टाँग अड़ाये खड़े है..कहीं से सहारा मिलता रहे तो ठीक-ठाक वर्ना भगवान ही खैर करें. क्योंकि आज नही तो कल मीडिया का कैमरा घूमेगा ज़रूर और जब घूमेगा तो कुछ ना कुछ कहर ढाएगा, जहाँ भी उसके कोई ब्रेकिंग न्यूज में ब्रेक हुआ कि पहले से ब्रेक न्यूज़ पर फिर से रोशनी डालना शुरू कर देंगे और फिर से उस बेचारे पर शनि ग्रह का ख़तरा मंडराने लगेगा..

आप को शायद यह जानकर आश्चर्य हो पर सच्चाई यही हैं कि आज के टाइम में तो भगवान शनि भी उन्ही महाशय पर वक्री होते है,जिसे दबोचने के लिए मीडिया नामक जीव की अपनी आँखे गड़ाए रहता है..

ललित मोदी और आई. पी. एल. के बाद उठी मीडिया चर्चा ने शशि थरूर के गुरूर को ख़त्म कर दिया पर पवार के पावर के आगे थोड़ी लाचार पड़ गई पर यह मीडिया की चुप्पी नही है बस वो पवार जी की कुछ कमजोर कड़ी की तलाश में है और जैसे ही वो मिला नही कि फिर से आई. पी. एल. का जिन्न बोतल से बाहर आ जाएगा..

एक जमाना था कि युवराज सिंह को आई. पी. एल. का हीरो बना दिया था इस बार उनकी खराब परफारमेंस को लेकर पीछे पड़ गई, अब जब तक युवराज सिंह कुछ अच्छा नही करते हर रोज कुछ ना कुछ आर्टिकल आते रहेंगे, अपने युवा तेज गेंदबाज़ श्रीसंत की हाइक भी मीडिया की देन है,

ये तो रही राजनीति और क्रिकेट की बातें पर बॉलीवुड भी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए मसाले दार न्यूज़ का बढ़िया श्रोत है.

एक खास बात बताना चाहूँगा कि अच्छा आज कल तो कुछ लोगों को ये पता भी रहता कि कैसे सुर्ख़ियों में आया जाता है मतलब बिना बुलाए मीडिया घर तक चली आए और फटाफट राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचार बना कर पेश कर दे इसका सीधा उदाहरण आप को देखने को मिलेगा जब प्रोड्यूसर किसी मूवी को रिलीज़ से पहले किसी छोटे मोटे विवाद में डाल दे डाइरेक्टर का हेरोइन से झगड़ा हो जाए या कॉपीराइट को लेकर किसी तीसरे बंदे से विवाद, इतना होना मतलब देश का हर नागरिक जान जाएगा फलाँ मूवी में कुछ खास ज़रूर है..और यकी मानिए ज़्यादातर मामलों में ऐसी चर्चा फिल्म प्रोड्यूसर के पक्ष में ही रहती है.


फिल्मी दुनिया हो,क्रिकेट का मैदान हो या राजनीति हर जगह मीडिया हमेशा घुसी पड़ी रहती है और जहाँ भी कही मसाले की संभावना देखी नही की बाज़ी मार ली अब बेचारे जो कल हीरो थे आज कैमरे से मुँह छिपाते फिरते रहते है.

मैं मीडिया नामक शक्ति को सलाम करता हूँ कि इनके वजह से आज बहुत कुछ बदलने लगा है कुछ नही तो कम से कम इतना तो है ही सबके अंदर डर बना रहता है जिस कारण एक सरकारी अफ़सर अब डाइरेक्ट घुस लेने से कतराता है,ट्रैफिक का नियम तोड़ने वाले बंदे से पुलिस वाले सारे समझौते किसी खंभे या पेड़ की आड़ में करते है ताकि कोई तीसरी आँख ना धर दबोचे.

तो है ना कमाल की हमारी मीडिया.... चलिए जय बोलिए मीडिया की.....जय हो मीडिया.

Wednesday, July 14, 2010

धन से मालामाल बहुत है,पर दिल से कंगाल बहुत है----(विनोद कुमार पांडेय)

धन से मालामाल बहुत है,
पर दिल से कंगाल बहुत है,

इस दुनिया का हाल न पूछो,
इसके बिगड़े चाल बहुत है,

धमा-चौकड़ी,हल्ला-गुल्ला,
बे-मतलब जंजाल बहुत है,

भागमभागी बस पैसों की,
सब के सब बेहाल बहुत है,

बिन बातों की पंचायत है,
घर-घर में चौपाल बहुत है,

तौल रहें रिश्ते को धन में,
ऐसे भी चंडाल बहुत है,

दारू पीकर लोट रहें जो,
भारत माँ के लाल बहुत है,

घर में बर्तन तक गिरवी है,
पर बाहर भौकाल बहुत है,

पढ़े-लिखे भी शून्य बनें हैं,
ऐसे घोंचूलाल बहुत है,

नही चाहिए पिज़्ज़ा-बर्गर,
हमको रोटी-दाल बहुत है.

Monday, July 5, 2010

रोज चेहरा बदलने लगा आदमी-----(विनोद कुमार पांडेय)

रोज चेहरा बदलने लगा आदमी
आदमी को ही छलने लगा आदमी

प्यार गायब हुआ,नफ़रतें बढ़ रही
आज अपनों से जलने लगा आदमी

दूसरों को दबा कर- सता कर, स्वयं
फूलने और फलने लगा आदमी

संस्कारों को ठोकर लगाते हुए,
आधुनिकता में ढलने लगा आदमी

चालबाजी भरी,फितरतें सीख कर
दाँव पर दाँव चलने लगा आदमी

कलयुगी ये हवा इस तरह लग गई
बर्फ की भाँति गलने लगा आदमी

थोड़ी बरकत खुदा से जो क्या मिल गई
मूँग छाती पे दलने लगा आदमी

आदमीयत को किसकी नज़र लग गई
आदमी को ही खलने लगा आदमी


Thursday, July 1, 2010

वो कहीं पर भी कामयाब नहीं-------(विनोद कुमार पांडेय)

बीते दिनों गिरीश पंकज जी के ब्लॉग पर तरही मिसिरा की एक लाइन पर नज़र गई तो उसी की लाइन को अपने शब्द और भाव दे कर आगे बढ़ाने में लग गया अंततः गिरीश चाचा जी के आशीर्वाद के बाद आज ग़ज़ल संपूर्ण हो गई.. गिरीश चाचा जी को समर्पित करके आज मैं यह ग़ज़ल आप के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ..आशीर्वाद चाहूँगा..

वो कहीं पर भी कामयाब नहीं,
जिसके ज़ेहन में इंक़लाब नहीं,

ख्वाब से जिंदगी करो रौशन
आँख में खो गये वो ख्वाब नहीं,

उड़ी गई रंग यहाँ गुलशने की,
फूल तो हैं मगर गुलाब नहीं,

वैसे तो हैं यहाँ कई हीरे
चमक तो पर हैं वो नायाब नहीं,

कैसे मै अब यकीन कर लूंगा
जिनकी फ़ितरत का कुछ जवाब नही,

दिल में अपने तो प्यार है केवल ,
कोई नफ़रत, कोई रुआब नही,

दोस्ती का तेरे सिला क्या दूँ,
बेवफ़ाई का कुछ हिसाब नही,