Monday, December 20, 2010

क्या तेरा क्या मेरा साथी----(विनोद कुमार पांडेय)

एक छोटे से अंतराल के बाद आज फिर एक छोटी बहर की छोटी ग़ज़ल पेश करता हूँ....उम्मीद करता हूँ आप सब को पसंद आएगी..धन्यवाद


जग सुख-दुख का डेरा साथी
सब मायावी घेरा साथी

रैन,सपन दो पल की खुशियाँ
आँख खुली अंधेरा साथी

रात घनी जितनी भी हो पर
उसके बाद सवेरा साथी

मिट जाना है एक दिन सब कुछ
किसका कहाँ बसेरा साथी

आस तभी तक जब तक साँसे
क्या तेरा क्या मेरा साथी

11 comments:

डॉ टी एस दराल said...

वाह , वाह , वाह !
छोटी बह्र में तकनीकि दृष्टि से परिपूर्ण सुन्दर रचना के लिए बधाई ।

Satish Saxena said...

बहुत खूब ...हमेशा की तरह अच्छी रचना के लिए बधाई भैया !

kshama said...

मिट जाना है एक दिन सब कुछ
किसका कहाँ बसेरा साथी

आस तभी तक जब तक साँसे
क्या तेरा क्या मेरा साथी
Wah! Nihayat achhee rachana!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत सुंदर!!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना जी, धन्यवाद

अविनाश वाचस्पति said...

वैसे ब्‍लॉग जगत के संदर्भ में कहें तो

ब्‍लॉग पोस्‍ट टिप्‍पणी का डेरा साथी
बिना टिप्‍पणी दिए न जाना साथी

गलती मेरी कभी मत बतलाना
कमी मेरी न जतलाना रे साथी

गिरीश बिल्‍लौरे और अविनाश वाचस्‍पति की वीडियो बातचीत

अरुण चन्द्र रॉय said...

छोटी बहर में ग़ज़ल लिखना मुश्किल काम है फिर भी आपकी ग़ज़ल बढ़िया है..

संजय भास्‍कर said...

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

संजय भास्‍कर said...

विनोद कुमार पांडेय जी को
जन्मदिवस पर हार्दिक बधाइयां और शुभकामनाएं

kuldeep thakur said...

आपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार 21/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
इस संदर्भ में आप के अनुमोल सुझाव का स्वागत है।

सूचनार्थ,

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत खूब