मित्रों,एक लंबे अंतराल के बाद,एक ग़ज़ल के साथ फिर से ब्लॉग-जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा हूँ|आप सब के प्रेम और आशीर्वाद का सदा आभारी रहूँगा|और उम्मीद करता हूँ यह प्रेम निरंतर बना रहेगा| धन्यवाद...
रहे इश्क की इंतेहा चाहता हूँ
वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ
बहुत पैरवी की,न हासिल हुआ कुछ
मुक़दमा कोई अब नया चाहता हूँ
इरादे न अब तक समझ पाएँ उनके
उन्ही से अब एक फ़ैसला चाहता हूँ
इशारों में बातें नही मुझको आती
मैं शायर हूँ अपनी ज़ुबाँ चाहता हूँ
नही मन को भाए, ये दुनिया के मेले
ख्यालों में डूबी फ़िज़ा चाहता हूँ
चकोरी से ज़ज्बात दिल की कहूँ मैं,
कि अपना अलग आसमाँ चाहता हूँ
दुखे दिल का किसी का जो मुझसे कभी तो
उसी पर मैं उसकी सज़ा चाहता हूँ
न रुपया,न पैसा,न सोना न चाँदी
मिले माँ की हरदम दुआ चाहता हूँ