Saturday, January 24, 2015

मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई-----(विनोद कुमार पाण्डेय )

पंकज सुबीर जी द्वारा आयोजित नए साल की तरही मुशायरे में शामिल की गई ग़ज़ल जिसे सभी शायरों ने सराहा ,अब आप ब्लॉग के मित्रों के लिए हाजिर है । धन्यवाद !

बिन किसी के लग रही थी हर ख़ुशी सोई हुई 
वो मिला तो जग गयी यह जिंदगी सोई हुई 

इक अदब के साथ भँवरे बाग़ में दाखिल हुए 
लग रहा है आज उनकी है कली सोई हुई 

धूल,बारिश,नाव,किस्से,काठ घोड़ा अब कहाँ 
आजकल तो बालकों की है हँसी सोई हुई 

है ख़ुशी नववर्ष की पर मन हमारा कह रहा  
मत पटाखे तू बजा है लाडली सोई हुई 

बेचता था स्वप्न वो,सौदा किया फिर चल दिया 
ख्वाब में डूबी रही वो बावली सोई हुई 

पेड़ सारे कट गए हैं गाँव विकसित हो गया  
बन गयी सड़कें नदी में है नदी सोई हुई 

मनचले कुछ भेड़ियों का बढ़ रहा है हौसला 
कब तलक आखिर रहेगी शेरनी सोई हुई 

चौधियायी चाँद की आँखें जमीं पर देख यह  
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई 

हर दफा इक जनवरी को सब यहीं है सोचते 
इस दफा किस्मत जगेगी है अभी सोई हुई 

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