#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सालों गुजर गए एक वो समय हुआ करता था जब ब्लॉग से नजर नहीं हटती थी ,सुबह-शाम ब्लॉग लिखने और पढ़ने का जो भूत सवार था वो फेसबुक के आने के बाद धीरे -धीरे कम होता गया,हमारे जैसे बहुत से लोग लिखते-पढ़ते रहे पर वो लय नहीं बन पायी | परन्तु बेहद खास बात रही कि ब्लॉग के दोस्त बिछुड़ने नहीं पाए और शायद इसी खास वजह से आज हम फिर संगठित होकर
सालों गुजर गए एक वो समय हुआ करता था जब ब्लॉग से नजर नहीं हटती थी ,सुबह-शाम ब्लॉग लिखने और पढ़ने का जो भूत सवार था वो फेसबुक के आने के बाद धीरे -धीरे कम होता गया,हमारे जैसे बहुत से लोग लिखते-पढ़ते रहे पर वो लय नहीं बन पायी | परन्तु बेहद खास बात रही कि ब्लॉग के दोस्त बिछुड़ने नहीं पाए और शायद इसी खास वजह से आज हम फिर संगठित होकर
#हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए आगे आये हैं | सभी मित्रों का पुनः स्वागत है ,एक बार फिर से सब मिलकर साथ चले और हिन्दी ब्लॉगिंग को एक और नया मुकाम दें |
आज इस नए कदम का स्वागत करते हुए ,एक कविता से ब्लॉगर्स डे को मानना चाहता हूँ ,बरसात हो रही है और नहीं भी हो रही है ,ऐसे मौसम में भाव उपजा है तो आप सभी के सम्मुख रह रहा हूँ | सभी ब्लॉगर्स मित्रों को अन्तर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स डे की बहुत बहुत बधाई |
ओ बादल,क्या आना तेरा झलक दिखा कर चले गए
हम बैठे थे आस लगाए तुम तरसा कर चले गए
तुमको देखा मन हरषाया
प्यास दबी थी उसे जगाया
सूखे सावन में तड़पा था
जो दिल उसने शोर मचाया
लेकिन तुम कुछ समझ न पाए आग लगा कर चले गए । हम बैठे थे .....
क्या है प्रेम समझ पाते तुम
थोड़ी देर ठहर जाते तुम
धरती भी हँस लेती थोड़ी
काश जरा सा मुस्काते तुम
पहले से उदास बैठी थी उसे रुला कर चले गए । हम बैठे थे .....
बहुत खुश हुए थे किसान भी
झुके हुए तन गए धान भी
तुम्हें देखकर लगे झूमने
बूढ़े ,बच्चें और जवान भी
लगता था बरसोगे लेकिन बस भरमा कर चले गए । हम बैठे थे .....
कलियों ने खुशबू बिखरायी
तुमको खुशबू रास न आयी
बिजली रानी तड़प-तड़प के,
अपने दिल की व्यथा सुनाई,
शायद सब के सब प्यासे थे तुम तड़पा के चले गये । हम बैठे थे .....
नदियाँ खाली पड़ी हुई थी
आँखे तुम्ही पर गड़ी हुई थी
हाथ उठा कर तुमको पाने ,
सारी बस्ती खड़ी हुई थी
तुमने फिर निराश कर डाला ख्वाब दिखा कर चले गए । हम बैठे थे .....
आ जाओ फिर इंतजार है
तुमसे ही जग में बहार है
अबकी थोड़ी देर ठहरना
प्यासी धरती बेकरार है
नदी,फूल,हम सब प्यासे हैं तुम इठला कर चले गए । हम बैठे थे .....
--विनोद पांडेय