Saturday, July 29, 2017

टमाटर


खा रहें हैं जो टमाटर आजकल,दायरे में टैक्स के वो आएँगे
पी रहे हैं जो टमाटर जूस उनके, घर पे छापे जल्द मारे जायेंगे
जिस कवि को बस लिफाफा ही मिला,वो बहुत हल्का कवि कहलायेगा
जिस कवि पर खूब बरसेगा टमाटर, राष्ट्रीय कवि वो ही माना जायेगा





--विनोद पांडेय

Saturday, July 8, 2017

गुरु जी की जय --(विनोद कुमार पांडेय )

सभी गुरुओं को नमन करते हुए एक आधुनिक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ | पढियेगा और अपना आशीर्वाद दीजियेगा | 


हुए नदारद प्रेम समर्पण,बदलें गुरु शिष्य के नाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देख कर मर ही जाते 

अर्जुन कभी हुआ करते थे 
गुरु की बात सुना करते थे 
आज शिष्य भी बदल गए हैं 
गुरु से आगे निकल गए हैं 
इस नवयुग की बेला में ,
रेलम,ठेलम-ठेला में ,
भाग रहे सब इधर उधर,
कहाँ गुरु और शिष्य किधर,
कौन करे अंगुली का दान,
एकलव्य सा कौन महान,
आज गुरु की कॉलर पकड़े,शिष्य बहादुर हैं गरियाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देख कर मर ही जाते 

गुरुजी का भी  हाल अनोखा 
हींग फिटकरी बिन रंग चोखा 
धन से मालामाल हो रहे 
गुरु से गुरु घंटाल हो रहे  
कुछ तो केवल फर्ज निभाते 
बस विद्यालय आते जाते 
माना उनको ज्ञान बहुत है 
पर ट्यूशन पर ध्यान बहुत है 
कुछ मेहनत करके थक जाते 
लेकिन कुछ बस मौज उड़ाते 

और परीक्षा में बच्चों को नक़ल कराके पास कराते 
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.

बदल रही है दुनिया सारी 
सिर्फ मची है मारा मारी 
शिष्य गुरु सब हुए आधुनिक 
और पढाई धिन -चिक,धिन-चिक  
शिक्षा,शिक्षक सब में झोल,
जैसे ढोल के अंदर पोल,
रुपये के अधिकार में हैं 
शिक्षा अब बाजार में है,
लोग लगाते दाम यहीं,
कुछ लोगों का काम यही,

विद्या अर्थ भूल करके वो ,विद्या से बस अर्थ कमाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.

जैसा पहले हम सुनते थे 
सुन कर के मन में गुनते थे 
वैसे गुरु शिष्य अब कम है 
सोच-सोच कर आँखें नम है  
गुरु शिष्य का प्रेम,समर्पण,
ख़त्म हुआ अब वो आकर्षण,
परिवर्तन का चढ़ा असर 
शिष्य बनाया गुरु पर डर  
क्षीण हुए गुरु के अधिकार,
आख़िर हो कर गुरु लाचार,
रख कर के बंदूक जेब में,शिक्षक कक्षा में अब जाते ,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.

लालू यादव जी और घोटाला -- (विनोद कुमार पांडेय )



आज के ज़माने में दस बच्चों को पाल-पोष कर बड़ा करना ,इतना आसान नहीं है | रिस्क तो लेना ही पड़ता है  




Thursday, July 6, 2017

यूपी में नई सरकार -- (विनोद कुमार पांडेय )

उत्तर प्रदेश में जब सरकार बनी तो सभी को बहुत उम्मीद थी ,बहुत सारी उम्मीदों पर काम अच्छे से शुरू हुआ था पर पता नहीं क्यों आजकल स्पीड थोड़ी धीमी हो गयी है ,अपराध तो थमने का नाम नहीं ले रहा है और सारा सिस्टम सुस्त सा चल रहा है ,योगी जी काम करने में लगे हैं पर जमीनी स्तर पर कुछ दिख नहीं रहा है | हाँ प्रचार बहुत जोरदार चल रही है | ऐसी स्थिति में कवि निष्पक्ष होकर अपनी बात तो रखेगा ही ,मैंने भी कुछ लाइनें लिख डाली | आज आप सभी के नजर है |  हास्य - व्यंग्य की स्थिति है,पर असली बात जो कहना चाहता हूँ ,वो भी साफ-साफ है | शायद मेरी बात योगी जी तक पहुँच जाये और उत्तर प्रदेश के विकास में रफ़्तार दिखाई दे |   








Tuesday, July 4, 2017

राष्ट्रपति चुनाव में भी दांवपेंच की आजमाइश ---(विनोद कुमार पांडेय)

आज राष्ट्रपति चुनाव भी अखाड़ा हो गया है ,दांवपेंच की आजमाइश चरम पर है |जो रिंग के भीतर जाने वाला है ,वो इस खेल के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता और बाहर बैठे उस्ताद दाँव में माहिर हैं | इन बाहर वालों की ही कलाकारी है कि कुछ पारम्परिक लड़ाकू अखाड़े में उतरने से पहले ही चित्त हो गए या कर चित्त कर दिए गए | 

सब उस्ताद लोगों ने अपने-अपने समर्थित, पोषित एवं शोषित शीर्षस्थ लड़ाकू को अखाड़े में मिट्टी पोत कर उतार दिया है और वो स्वयं बाहर बैठ कर उम्मीदवार के सामाजिक गुणों की चर्चा करते हुए उसे परिणाम पूर्व ही विजेता घोषित करने पर तुले हैं | जिन्हें लड़ना है ,उनके चेहरे से उत्साह गायब है क्योंकि उनकी वास्तविक योग्यता को पीछे रखकर उन बातों पर जोर दिया जा रहा है जो सामाजिक अखंडता पर ठोकर मारता है | 

राजनीति ऐसी थी पर राष्ट्रपति चुनाव ऐसा नहीं हुआ था,कौन सा राजनैतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ है ? समझ से परे है | यह सिर्फ एक ईगो है वर्ना जो देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाला हो उसके चयन में मल्ल्युद्ध की क्या आवश्यकता है ? ,उसे तो निर्विवाद रूप से उस कुर्सी पर बैठना चाहिए क्योंकि वो भारत का प्रथम व्यक्ति है | वो सामाजिक कसौटी पर खरा उतरता तो हो पर जातीय और सम्र्पदाय से परे हो ,वह लोगों का आदर्श हो ,इस देश का आदर्श हो ताकि देश के इतिहास में उसका व्यक्तित्व सुरक्षित हो जाये और देश उसको कभी भूल न पाए | 


--विनोद पांडेय

Sunday, July 2, 2017

ट्यूबलाइट ---(विनोद कुमार पांडेय )

नाच मेरी जान होके मगन तू,छोड़ के सारे किन्तु परन्तु , आज जैसे ही ट्यूबलाइट का यह दार्शनिक गाना कान में पड़ा वैसे ही दिमाग के सारे तार झनझना गए ,झनझनाये इस बात पर कि जाने क्यों आजकल सब लोग नाचने-नचाने के पीछे बड़े जोर-शोर से पड़े हैं ,और इस गाने में तो गीतकार महोदय ने साफ-साफ़ इस बात की ओर इंगित किया कि आज के टाइम में नाचना ही मोक्ष का द्वार है ,समस्त चिंताओं का नाश है | मानो गाना न हो गया कोई गीता का सार हो | 

जमाना बदला,लोग बदले तो बात भी बदल गयी और बात कहने का तरीका भी | कभी एक जमाना था जब राजेश खन्ना जी बोले थे कि नाच मेरी बुलबुल तुझे पैसा मिलेगा ,और आज जब लोग पैसे के पीछे जमकर उछल कूद कर रहे हैं तब सलमान खान जी मुफ्त में नाचने की बात कर रहे हैं,वो भी बेशर्म होकर | ऐसा कह कर उन्होंने राजेश खन्ना जी का भी सारा गणित ख़राब कर दिया |कमर मटकाने की महिमा का वर्णन ऐसे किया जैसे जिंदगी में नाचना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य हो और इससे इतर बाकि कुछ माया मोह | 

खैर इस आधुनिक युग में कुछ भी जरा जोर लगा कर कह दो तो चल जाता है ,गाना हिट है ,लोग झूम नाच रहे हैं ,आगे और भी झूमने वाले लोग निकल-निकल कर आएंगे |कुछ दिनों पहले जो लोग भैस चराने गए थे इस बार वो भी नाचते हुए मिलेंगे | अद्भुत शक्ति होती है ऐसे गानों में | वैसे भी चटपटे गानों पर नींबू डाल कर बेच देने में सलमान खान को महारत हासिल है और आधा भारत उनकी इस नैसर्गिक प्रतिभा का भयंकर कायल है |

सभी ने देख ही लिया है कि बजरंगी भाईजान कैसे अखाड़े में दंड बैठकी मार कर सुल्तान बन गया था ,पर ट्यूबलाइट सुल्तान की जिंदगी में रोशनी नहीं कर पायी फिर भी वो लोग  किन्तु-परन्तु छोड़ कर नाच सकते हैं  ,जो  सलमान खान के भक्त हैं | 

--विनोद पांडेय